सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
तयोरिति॥ व्यापत्तिर्मरणम्। नवीभूतः पितृव्यापत्तिशोको ययोस्तौ तयो राघवयोस्तस्मिन्गृध्रे पितरीवाग्निसंस्कारादग्निसंस्कारमारभ्य परा उत्तराः क्रिया ववृतिरेऽवर्तन्त। तस्य पितृवदौर्ध्वदेहिकं चक्रतुरित्यर्थः ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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त | यो | स्त | स्मि | न्न | वी | भू | त |
पि | तृ | व्या | प | त्ति | शो | क | योः |
पि | त | री | वा | ग्नि | सं | स्का | रा |
त्प | रा | व | वृ | ति | रे | क्रि | याः |