चण्डस्त्वत्यन्तकोपनः
इत्यमरः (अमरकोशः ३.१.३२ ) । सा किल भर्त्राऽऽश्वासिताऽनुनीता सती तेन भर्त्रा संश्रुतौ प्रतिज्ञातौ वरौ। इन्द्रेणसिक्ताऽभिवृष्टा भूर्बिले वल्मीकादौ मग्नावुरगाविव। उद्ववामोज्जगार ॥
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सा | कि | ला | श्वा | सि | ता | च | ण्डी |
भ | र्त्रा | त | त्सं | श्रु | तौ | व | रौ |
उ | द्व | वा | मे | न्द्र | सि | क्ता | भू |
र्बि | ल | म | ग्ना | वि | वो | र | गौ |