सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
उदिति॥ उदायुधानुद्यतायुधानापतत आगच्छतो दृप्तांस्तान्खरादीन्प्रेक्ष्य राघवश्चापे विजयस्याशंसामाशां लक्ष्मणे सीतां च निदधे। सीतारक्षणे लक्ष्मणं नियुज्य स्वयं युद्धाय संनद्ध इति भावः ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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उ | दा | यु | धा | ना | प | त | त |
स्ता | न्दृ | प्ता | न्प्रे | क्ष्य | रा | घ | वः |
नि | द | धे | वि | ज | या | शं | सां |
चा | पे | सी | तां | च | ल | क्ष्म | णे |