सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
फलमिति॥ श्लोकद्वयेनान्वयः। अस्योपहासस्य फलं सद्यः संप्रत्येव प्राप्स्यसि। मां पश्य । त्वया कर्त्र्या कृतमुपहासरूपं करणं व्याघ्र्यां विषये मृग्याः कर्त्रअयाः परिभव इत्यवेहि ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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फ | ल | म | स्यो | प | हा | स | स्य |
स | द्यः | प्रा | प्स्य | सि | प | श्य | माम् |
मृ | ग्याः | प | रि | भ | वो | व्या | घ्र्या |
मि | त्य | वे | हि | त्व | या | कृ | तम् |