सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
श्रुत्वेति॥ कैकेयीतनयो भरतः पितुस्तथाविधं स्वमातृमूलं मृत्युं मरणं श्रुत्वा स्वस्या मातुः केवलं मातुरेव पराङ्मुखो न। किंतु श्रियोऽपि पराङ्मुख आसीत् ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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श्रु | त्वा | त | था | वि | धं | मृ | त्युं |
कै | के | यी | त | न | यः | पि | तुः |
मा | तु | र्न | के | व | लं | स्व | स्याः |
श्रि | यो | ऽप्या | सी | त्प | रा | ङ्मु | खः |