सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
बालेति॥ पतिष्यत आसन्नपातस्य रक्षःकायस्य रावणकलेवरस्य छिद्यन्त इति छेदाः खण्डाः। कण्ठानां ये छेदास्तेषां परम्परा पङ्क्तिः। वीचिमिर्भिन्ना नानाकृताप्सु बालार्कस्य प्रतिमा प्रतिबिम्बमिव। रराज। अर्कस्य बालविशेषणमारुण्यसिद्ध्यर्थमिति भावः ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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बा | ला | र्क | प्र | ति | मे | वा | प्सु |
वी | चि | भि | न्ना | प | ति | ष्य | तः |
र | रा | ज | र | क्षः | का | य | स्य |
क | ण्ठ | च्छे | द | प | र | म्प | रा |