सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
भस्मसादिति॥ पितृद्विषः पितृवैरिणो भस्मसात्कृतवतः कोपेन भस्मीकुर्वतः। विभाषा साति कार्त्स्न्ये
(अष्टाध्यायी ५.४.५२ ) इति सातिप्रत्ययः। ससागरां वसुधां च पात्रसात् पात्राधीनं देयं कृतवतः। देये त्रा च
(अष्टाध्यायी ५.४.५५ ) इति चकारात्सातिः। कृतकृत्यस्य मे परमेष्ठिना परमपुरुषेण त्वयाऽऽहितः कृतो जयविपर्ययः पराजयोऽपि श्लाघ्य आशास्य एव ॥
छन्दः
रथोद्धता [११: रनरलग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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भ | स्म | सा | त्कृ | त | व | तः | पि | तृ | द्वि | षः |
पा | त्र | सा | ञ्च | व | सु | धां | स | सा | ग | राम् |
आ | हि | तो | ज | य | वि | प | र्य | यो | ऽपि | मे |
श्ला | ध्य | ए | व | प | र | मे | ष्ठि | ना | त्व | या |
र | न | र | ल | ग |