वेध्यं लक्ष्यं शरव्यं च
इति हलायुधः। इतरान्नाकरोत्। तथा हि-महोरगविसर्पिविक्रमो गरुडो गरुत्मान् राजिलेषु जलव्यालेषु प्रवर्तते किम्? न प्रवर्तत इत्यर्थः। अलगर्दो जलव्यालः समौ राजिलडुण्डुभौ
इत्यमरः (अमरकोशः १.८.५ ) ॥
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त | त्र | या | व | धि | प | ती | म | ख | द्वि | षां |
तौ | श | र | व्य | म | क | रो | त्स | ने | त | रान् |
किं | म | हो | र | ग | वि | स | र्पि | वि | क्र | मो |
रा | जि | ले | षु | ग | रु | डः | प्र | व | र्त | ते |
र | न | र | ल | ग |