सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
बिभ्रत्येति॥ किंच, स्तनयोरन्तरे मध्ये विलम्बिनं लम्बमानम्। न्यस्यत इति न्यासः। कौस्तुभ एव न्यासस्तम्। पत्या कौतुकान्न्यस्तम्। कौस्तुभमित्यर्थः। बिभ्रत्या पद्ममेव व्यजनं हस्ते यस्यास्तया लक्ष्म्या पर्युपास्यन्तोपासिताः ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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बि | भ्र | त्या | कौ | स्तु | भ | न्या | सं |
स्त | ना | न्त | र | वि | ल | म्बि | नम् |
प | र्यु | पा | स्य | न्त | ल | क्ष्म्या | च |
प | द्म | व्य | ज | न | ह | स्त | या |