प्रग्रहोपग्रहौ बन्द्याम्
इत्यमरः (अमरकोशः २.८.११९ ) । रिपुश्रिया साञ्जनो बाष्पसेको ययोस्ते। कज्जलमिश्राश्रसिक्ते इत्यर्थः। पद्धती इव। द्वे ज्याघातानां मौर्वीकिणानां रेखे राजी भुजाभ्यां बिभर्ति । द्विवचनात्सव्यसचित्वं गम्यते। रिपुश्रियां भुजाभ्यामेवाहरणात्तद्गतरेखयोस्तत्पद्धतित्वेनोत्प्रेक्षा। तयोः श्यामत्वात्साञ्जनाश्रुसेकोक्तिः ॥
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ज्या | घा | त | रे | खे | सु | भु | जो | भु | जा | भ्यां |
बि | भ | र्ति | य | श्चा | प | भृ | तां | पु | रो | गः |
रि | पु | श्रि | यां | सा | ञ्ज | न | बा | ष्प | से | के |
ब | न्दी | कृ | ता | ना | मि | व | प | द्ध | ती | द्वे |