सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
तथेति॥ मातलिसारथिरिन्द्रो रघोः संबन्धिनं कामं मनोरथं तथेति तथास्तु
इति प्रतिशुश्रुवान्। भाषायां सदवसश्रुवः
(अष्टाध्यायी ३.२.१०८ ) इति क्वसुप्रत्ययः। तथागतं ययौ सुदक्षिणासूनू रघुरपि नातिप्रमना विजयलाभेऽप्यश्वनाशान्नातीव तुष्टः सन्। नञर्थस्य नशब्दस्य सुप्सुपेति समासः। नृपस्य सदोगृहं प्रति न्यवर्तत ॥
छन्दः
वंशस्थम् [१२: जतजर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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त | थे | ति | का | मं | प्र | ति | शु | श्रु | वा | न्र | घो |
र्य | था | ग | तं | मा | त | लि | सा | र | थि | र्य | यौ |
नृ | प | स्य | ना | ति | प्र | म | नाः | स | दो | गृ | हं |
सु | द | क्षि | णा | सू | नु | र | पि | न्य | व | र्त | त |
ज | त | ज | र |